आलोचना >> भारतीय भक्ति-साहित्य भारतीय भक्ति-साहित्यराजमल बोरा
|
0 |
भक्ति साहित्य की परम्परा
मध्यकाल में हमारे देश में, ‘भक्ति आन्दोलन’ ऐतिहासिक आन्दोलन के रूप में उभरा है। मूल रूप में यह आन्दोलन सांस्कृतिक रहा है। इससे सम्बन्धित साहित्य ने प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक परम्परा को सतत जीवित और प्रवहमान रखा है और इसका सम्बन्ध भारत की प्रायः समस्त आधुनिक भाषाओं में से रहा है। ऐसे साहित्य का परिचय ऐतिहासिक संदर्भ में देने का प्रयास इस पुस्तक में हुआ है। हमारी आधुनिक भाषाएँ भक्ति आन्दोलन के कारण प्राणवान और बलवान हुई हैं। भक्त कवियों ने हमारी भाषाओं की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ाई है। इस नाते भक्ति आन्दोलन भारतीय संस्कृति को सनातन बनाए रखने और अतीत को समकालीन रूप में सुरक्षित रखने में समर्थ रहा है। इस नाते वह आज भी प्रासंगिक है क्योंकि उस वाङ्मय में हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर है। ऐसे साहित्य की पहचान इस पुस्तक में है।
|